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लापरवाही की हद – ट्रैक पर एक आवेदक दे रहा था टैस्ट ट्राई, दूसरे को भी मिला प्रवेश

PUBLISH DATE: 26-09-2025

दोनों आवेदक फंसे मुसीबत में, सेवादार ने जाकर दूसरी गाड़ी के निकलवाया बाहर


 


 


जालंधर, 26 सितंबर  : जालंधर का ड्राइविंग टैस्ट ट्रैक आए दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में रहता है। कभी सर्वर धीमा चलना, कभी कैमरों का खराब रहना, कभी बरसात के दिनों में सिस्टम का पूरी तरह ठप हो जाना – यह सब यहां आम बात है। लेकिन गुरुवार को जो नज़ारा ट्रैक पर देखने को मिला, उसने सभी को हैरान कर दिया। पहली बार ऐसा हुआ जब एक ही समय में ट्रैक पर दो गाड़ियां टेस्ट देती हुई नज़र आईं।


यह घटना न केवल नियमों की धज्जियां उड़ाती है बल्कि आवेदकों को गंभीर परेशानी में डालने वाली भी है। जब तक प्रशासन इस मामले में पारदर्शी जांच और ठोस कदम नहीं उठाता, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराने से कोई रोक नहीं सकता। ड्राइविंग टैस्ट ट्रैक पर हर दिन सैकड़ों आवेदक लाइसेंस के लिए आते हैं। ऐसे में सिस्टम की पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। गुरुवार की घटना ने साबित कर दिया है कि यहां या तो तकनीकी खामियां हैं या फिर कर्मचारियों की गंभीर लापरवाही। दोनों ही हालात में जिम्मेदारी तय करना और दोषियों पर कार्रवाई करना प्रशासन की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।


एक साथ दो गाड़ियों की एंट्री, हैरान हुए लोग


गुरुवार को ट्रैक पर एक वाहन अपनी टैस्ट ट्राई पूरी करके बाहर निकल रहा था। इसी दौरान उसके ठीक पीछे दूसरी गाड़ी भी ट्रैक पर घुस गई। जबकि नियम यह है कि जब तक एक आवेदक की ट्राई पूरी नहीं हो जाती और उसका डेटा सिस्टम में लॉक नहीं हो जाता, तब तक किसी दूसरे वाहन को ट्रैक पर आने की अनुमति नहीं दी जाती। सवाल यह उठता है कि आखिर यह चूक कैसे हुई? क्या सिस्टम में तकनीकी गड़बड़ी थी या कर्मचारियों की लापरवाही?


आवेदकों पर गिरी सकती है गाज


इस घटना का सबसे बड़ा खामियाजा उन आवेदकों पर पड़ा जिनकी गाड़ियां एक साथ ट्रैक पर आ गईं। नियमों के अनुसार, अगर कोई आवेदक टेस्ट में फेल हो जाता है तो उसे री-ट्राई का कोई मौका नहीं मिलता। उसे दोबारा नई अपॉइंटमेंट बुक करनी पड़ती है, जो कि 1 से 2 महीने बाद ही मिल पाती है। यानी बिना किसी गलती के आवेदक का कीमती समय और मेहनत पूरी तरह बर्बाद हो सकती है।


इस मामले से कई बड़े सवाल हुए खड़े


इस लापरवाही से जुड़ी कई बातें अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई हैं।



  • अगर ट्रैक पर कंप्यूटर सिस्टम में पहले आवेदक की ट्राई जारी थी तो दूसरा आवेदक कैसे प्रवेश कर गया?

  • क्या दूसरे आवेदक की एंट्री सिस्टम में पहले से दर्ज कर दी गई थी? अगर हां, तो उसकी ट्राई किस तरह मानी जाएगी—पास या फेल?

  • अगर दूसरे आवेदक की एंट्री सिस्टम में दर्ज ही नहीं हुई थी, तो उसे ट्रैक पर वाहन लेकर जाने दिया कैसे गया?

  • पहले आवेदक का टेस्ट परिणाम क्या रहा—पास या फेल?


ये सवाल अब प्रशासन और ट्रैक संचालकों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवालचिह्न लगा रहे हैं।


इसमें तकनीकी गड़बड़ी थी या यह थी कोई मानवीय भूल ?


ड्राइविंग टैस्ट ट्रैक पर पहले भी तकनीकी खराबियों की शिकायतें आती रही हैं। कई बार सर्वर की स्पीड इतनी धीमी हो जाती है कि आवेदकों को घंटों इंतज़ार करना पड़ता है। बरसात के दिनों में ट्रैक पूरी तरह ठप पड़ जाता है। ऐसे में गुरुवार की घटना यह संकेत देती है कि यहां सिस्टम की सुरक्षा और संचालन दोनों में गंभीर खामियां हैं। अगर यह मानवीय भूल थी, तो जिम्मेदार कर्मचारी पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? और अगर यह तकनीकी गड़बड़ी थी, तो भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे?


प्रशासन पर भी उठे कई सवाल


इस तरह की घटनाएं प्रशासन की कार्यशैली पर सीधे तौर पर सवाल खड़े करती हैं। लोगों का कहना है कि जब लाखों रुपए खर्च करके ट्रैक और सिस्टम को अत्याधुनिक तकनीक से लैस किया गया है, तो फिर ऐसी लापरवाही कैसे हो रही है ? यदि ट्रैक पर कैमरे और सेंसर ठीक से काम कर रहे होते, तो दो गाड़ियों को एक साथ एंट्री ही नहीं मिल सकती थी। घटना के बाद कई आवेदकों ने इस पर नाराज़गी जताई। उनका कहना है कि प्रशासन की लापरवाही की सज़ा उन्हें क्यों भुगतनी पड़े ? “हमारी गलती नहीं थी। हमने सही तरीके से टेस्ट दिया, लेकिन अचानक ट्रैक पर दूसरी गाड़ी आ गई। अब अगर सिस्टम हमें फेल दिखाता है तो हमें दोबारा अपॉइंटमेंट के लिए महीनों इंतज़ार करना होगा,” एक आवेदक ने कहा।


सारी गलती दूसरे आवेदक की, मगर पहले आवेदक के टैस्ट पर नहीं पड़ा कोई असर – संदीप


ट्रैक पर तैनात टैस्ट ट्राई लेने वाले कर्मचारी संदीप कुमार से जब इस संबधी बात की गई तो उनका कहना था कि सारी गलती दूसरे आवेदक की थी। क्योंकि हर आवेदक को टैस्ट ट्राई देने से पहले सेवादार आवाज़ लगाकर बुलाता है और जब यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि गाड़ी चलाने वाला खुद आवेदक ही है तो उसे गाड़ी ट्रैक पर चलाने के लिए कहा जाता है। मगर इस मामले मे आवेदक पहली बार बुलाने पर तुरंत ही बिना किसी से कुछ पूछे ट्रैक पर गाड़ी लेकर घुस गया। मगर टैस्ट ट्राई देने वाले पहले आवेदक की ट्राई पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि एक समय में जो गाड़ी पहले प्रवेश करके ट्रैक पर बने ब्रिज को पार करती है, उसका ही ग्राफ बनता है और दूसरे का नहीं। मगर इस तरह की लापरवाही किसी दुर्घटना का कारण भी बन सकती है। इसलिए भविष्य में और अधिक ध्यान रखा जाएगा।