सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 में दो दिन नहीं हुई एक भी अप्रूवल !

अधिकारियों को गुमराह कर कर्मचारियों ने रचा बड़ा खेल
43 दस्तावेज़ पेंडिंग, आवेदक और वसीका नवीस हुए परेशान
जालंधर, 3 सितंबर : ईज़ी रजिस्ट्री प्रणाली जिसे आम जनता की सुविधा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया था, अब भ्रष्टाचार और आंतरिक खींचतान के चलते लोगों के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। इसका ताज़ा उदाहरण सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 कार्यालय में देखने को मिला, जहां लगातार दो दिनों तक एक भी दस्तावेज़ की अप्रूवल नहीं हुई। नतीजतन, आवेदकों और वसीका नवीसों में गहरा रोष है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार शुक्रवार के बाद से सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 में कोई अप्रूवल नहीं हुआ है। मौजूदा समय में करीब 43 दस्तावेज़ अप्रूवल के इंतज़ार में पेंडिंग पड़े हुए हैं। हालांकि मंगलवार को ज्वाईंट सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 जगतार सिंह ने अपनी आईडी में आए अप्रूवल पूर्व की भांति ज़रूर किए, मगर ज्वाईंट सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 रवणीत कौर की आईडी में एक भी अप्रूवल नहीं हो सका।
स पूरे घटनाक्रम के पीछे जो वजह सामने आई है, उसने न केवल अधिकारियों को हैरान कर दिया है बल्कि कर्मचारियों की सोची-समझी साजिश और भ्रष्टाचार की ओर भी इशारा किया है। ईज़ी रजिस्ट्री प्रणाली की शुरुआत लोगों को सुविधा, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार-मुक्त माहौल देने के लिए की गई थी। लेकिन सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 का यह मामला बताता है कि यदि कर्मचारियों की मंशा सही न हो, तो कोई भी प्रणाली कितनी ही आधुनिक क्यों न हो, वह जनता के लिए सिरदर्द बन सकती है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है और आवेदकों की राहत के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।
अस्थाई अधिकारियों को जानबूझकर किया गया गुमराह
सोमवार को ज्वाइंट सब-रजिस्ट्रार जगतार सिंह और रवणीत कौर अवकाश पर थे। उनकी अनुपस्थिति में तहसीलदार-2 प्रवीण कुमार सिंगला और कानूनगो अजीत सिंह को ज़िम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन, इन दोनों अधिकारियों को कामकाज के दौरान गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
तहसीलदार प्रवीण कुमार ने बताया कि कार्यालय के कर्मचारियों ने उन्हें साफ कह दिया कि जब तक ज्वाइंट सब-रजिस्ट्रार जगतार सिंह अपनी आईडी से पेंडिंग दस्तावेज़ अप्रूव नहीं करेंगे, तब तक वे किसी भी नए दस्तावेज़ पर अप्रूवल नहीं कर सकते। कर्मचारियों ने उन्हें केवल 17 आवेदनों की एक सूची थमा दी और कहा कि इन्हीं मामलों में वह कार्रवाई कर सकते हैं, क्योंकि ये पहले से अप्रूव हो चुके हैं।
इसी तरह, कानूनगो अजीत सिंह को भी यही दलील दी गई। जब उन्होंने बार-बार तकनीकी सहायक और आरसी से पूछा कि दस्तावेज़ अप्रूव क्यों नहीं किए जा सकते, तो उन्हें टाल दिया गया। कर्मचारियों ने साफ कहा कि पहले स्थायी अधिकारी पेंडिंग केस निपटाएंगे, तभी नए दस्तावेज़ अप्रूवल के लिए आगे बढ़ पाएंगे।
क्या है अप्रूवल के लिए असली प्रक्रिया ?
इस मामले पर जब ज्वाइंट सब-रजिस्ट्रार जालंधर-1 दमनबीर सिंह से बात की गई तो उन्होंने पूरी तरह अलग अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि जब वह अवकाश पर गए थे, तब उनकी जगह तहसीलदार-1 जगसीर मित्तल को जिम्मेदारी दी गई थी। उस दौरान उनकी आईडी में पड़े सभी पेंडिंग दस्तावेज़ों को जगसीर मित्तल ने ही अप्रूव किया था। दमनबीर सिंह ने स्पष्ट किया कि प्रणाली में आईडी बदलती नहीं है, केवल अधिकारी का नाम बदलता है। पेंडिंग पड़े सभी दस्तावेज़ नए अधिकारी को भी दिखाई देते हैं और उन्हें अप्रूव करने का पूरा अधिकार होता है।
इस मामले में आ रही है करप्शन की बू
सूत्रों के अनुसार इस पूरे मामले के पीछे स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार झलक रहा है। आरोप है कि कर्मचारियों ने जानबूझकर अस्थाई अधिकारियों को काम नहीं करने दिया, ताकि पुरानी "रिश्वत की कमाई" नए अधिकारियों के साथ बांटनी न पड़े। यही कारण है कि दो दिनों तक आवेदकों की फाइलें ठंडी बस्ते में डाल दी गईं। वैसे इसके लिए कौन दोषी है और किसके खिलाफ कारवाई होनी चाहिए, यह तो प्रशासन या विभाग द्वारा जांच करने के बाद ही पता लगेगा, मगर इतना साफ है कि इस तरह से सरकार की साख को गहरा धक्का पहुंचाने का काम अवश्य किया जा रहा है।
एक वसीका नवीस ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह स्थिति बेहद शर्मनाक है। उनका कहना था कि बरसात या एनओसी की अनिवार्यता के कारण रजिस्ट्रियों में पहले से ही कमी आई हुई है। लेकिन अगर लगातार दो दिन एक भी दस्तावेज़ अप्रूव न हो, तो यह आम जनता के लिए असुविधा नहीं बल्कि अपमानजनक स्थिति बन जाती है।
आवेदकों की परेशानी
आवेदक और वसीका नवीस दोनों ही अब दुविधा में हैं। जिन लोगों ने समय से अप्वॉइंटमेंट लेकर दस्तावेज़ दाखिल किए थे, वे अब हताश हैं। क्योंकि दो दिन से पहले ही अप्रूवल नहीं हुई है, अब आगे पुराने स्थाई अधिकारी उसको कितनी देर में अप्रूव करते हैं और कोई आबजैक्शन लगाते हैं या नहीं। मगर हर हाल में उनकी रजिस्ट्री में ज़रूर देरी हो जाएगी। लोग मानते हैं कि अगर स्थायी अधिकारी छुट्टी पर जाते हैं और अस्थाई अधिकारी केवल खाली बैठने के बाद वापिस लौटते हैं, तो बेहतर यही होगा कि उन दिनों दफ्तर को आधिकारिक तौर पर बंद ही कर दिया जाए।
गंभीर सवालों के घेरे में व्यवस्था
यह मामला न केवल ईज़ी रजिस्ट्री प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है बल्कि अधिकारियों और कर्मचारियों की नीयत पर भी। जब एक ही प्रणाली में दूसरे कार्यालय में अस्थाई अधिकारी दस्तावेज़ अप्रूव कर सकते हैं, तो फिर जालंधर-2 में यह बहाना क्यों बनाया गया? क्या यह किसी बड़े भ्रष्टाचार का हिस्सा है या फिर आंतरिक खींचतान का नतीजा ?
मेरी जानकारी में नहीं है मामला, अधिकारियों ने खुद देखना है कौन से दस्तावेज़ करने हैं रजिस्टर्ड – जगतार सिंह
ज्वाईंट सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 जगतार सिंह से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस मामले की उनको कोई जानकारी नहीं है। मगर जब कर्मचारियों से पूछा तो उनका कहना था कि उनक तरफ से किसी अधिकारी को गुमराह नहीं किया गया। यह तो अधिकारी ने खुद देखना है कि उनकी आईडी में कितने दस्तावेज़ पैंडिग हैं और उन्होने कितने अप्रूव करने हैं।

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